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Afghanistan: अकेली महिलाओं के सामने गहराया रोजी रोटी का संकट, तालिबानी हुकूमत में लगे कई प्रतिबंध

Afghanistan: अफगानिस्तान में महिलाओं की स्थिति इतनी खराब हो चुकी है कि वे भीख मांगने को मजबूर हैं. भीख में मिले पैसे से ही दो वक्त की रोटी का इंतजाम हो पाता है. 

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Afghanistan: अफगानिस्तान में तालिबान की हुकूमत कायम होने के बाद कई लोगों खासतौर पर विधवा और अकेली महिलाओं के सामने रोजी रोटी का संकट गहरा गया है. एक रिपोर्ट के अनुसार जहां पहले 2018 में 72 प्रतिशत लोग गरीबी में जी रहे थे वहीं अब तालिबानी हुकूमत में यह बढ़कर 97 प्रतिशत जा पहुंचा है.

 महिलाओं पर लगा अंतरराष्ट्रीय और राष्ट्रीय प्रतिबंध

अंतरराष्ट्रीय और राष्ट्रीय संगठनों में महिलाओं के काम करने पर लगे प्रतिबंध और सार्वजनिक स्थानों पर तालिबान द्वारा लगाई गई रोक के बाद विधवा और अकेली महिलाओं के लिए काम कर पाना मुश्किल हो गया है.

आंकड़ों पर नजर डाली जाए तो पहले अफगानिस्तान में लगभग 10 प्रतिशत शिक्षित महिलाएं अपने बच्चों के भरण-पोषण के लिए राष्ट्रीय या अंतरराष्ट्रीय संगठनों में काम किया करती थीं. कम पढ़ी-लिखी महिलाएं घरेलू सहायिका के रूप में, ग्रामीण इलाकों में छोटे पशुओं की देखभाल करके और गेहूं, मक्का और अन्य सब्जियां उगाकर आजीविका चलाती थीं.

भीख मांगने को मजबूर अफगानिस्तान की महिलाएं

बताया जा रहा है कि अफगानिस्तान में महिलाओं की स्थिति इतनी खराब हो चुकी है कि वे भीख मांगने को मजबूर हैं. भीख में मिले पैसे से ही दो वक्त की रोटी का इंतजाम हो पाता है. अफगानिस्तान में हजारों की संख्या में ऐसी महिलाएं हैं, जिन्होंने शासन में बदलाव के कारण अपनी नौकरियां गंवा दी हैं. कई कुपोषण का शिकार हैं और यह भी नहीं जानतीं कि उन्हें अगले वक्त की रोटी मिल पाएगी या नहीं.

कैसे कमाएं पैसे

अफगानिस्तान में अकेली रहने वाली महिलाओं और विधवाओं के पास असल में पैसे कमाने का कोई तरीका नहीं है. क्योंकि इनके परिवार के पुरुष सदस्य या तो मारे गए हैं या बुरी तरह घायल होने से कमाने के काबिल नहीं रह गए हैं.

तालिबान ने सभी सैलून, सार्वजनिक स्नानघर और महिला खेल केंद्र को बंद कर दिया गया है. इनसे महिलाओं को रोजगार मिला करता था.

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अफगानिस्तान में नहीं मिल पा रहा बहुसंख्य आबादी को भरपेट भोजन

अफगानिस्तान में लाचारी का आलम यह है कि यहां 95 प्रतिशत लोगों को पर्याप्त भोजन ही नहीं मिल पा रहा है. वहीं बात करें महिला-प्रधान परिवारों की तो वहां यह आंकड़ा लगभग 100 प्रतिशत है. ऐसे में यह बड़ा सवाल है कि आखिर अफगानिस्तान की महिलाओं की यह बेबसी कब दूर होगी.

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