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होली का पर्व क्यों है विशेष, क्या है इसका महत्व?

होली के दिन फगुआ गीत गाने की प्रथा लम्बे समय से रही है जिसका बदलते वक्त के साथ भी अनुसरण किया जा रहा है.

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सांकेतिक फोटो-सोशल मीडिया

गांव से लगायत शहर तक रंगों में सराबोर हैं, रंग और गुलाल के साथ स्वादिष्ट पकवान आपसी सौहार्द और प्रेम को परस्पर बढ़ा रहे हैं. फागुन के इस महीने में फगुनाहट अपने चरम पर रहती है और गांवों में अभी भी इसे पूरे उत्साह के साथ पारम्परिक तौर तरीकों से मनाया जाता है. होली के इस पर्व पर लोग आपसी मनमुटाव को भूलकर एक दूसरे से गले मिलकर रंग लगाकर बीती बातों को भुला देते हैं.

होली के दिन फगुआ गीत गाने की प्रथा लम्बे समय से रही है जिसका बदलते वक्त के साथ भी अनुसरण किया जा रहा है. वर्तमान समय मे शहरों में भले ही यह परंपरा अब लुप्त होने लगी है, शहरों एवं शहरी आबादी के करीब स्थित गॉवों में अब ढोल मजीरे का स्थान डीजे ने ले लिया है लेकिन गांवों में अभी भी ढोल मजीरे के साथ होली पर फगुआ गीत गाकर इस परम्परा का अनुसरण किया जा रहा है.

शास्त्रों के अनुसार बसंत पंचमी से फागुन का महीना शुरू हो जाता है. इसी फागुन के महीने में रंग बिरंगी होली का महापर्व मनाया जाता है. फागुन के समय बाजारों में रौनक होती है वहीं खेतों में हरियाली छाई रहती है. जब ऋतु परिवर्तन होता है तो उसके साथ प्राकृतिक जगत की सुंदरता में काफी बदलाव आता है और फागुन के माह में प्रकृति अपना श्रृंगार करती है. होली क्यों एवं कबसे मनाई जाती है इसको लेकर कई कहानियां प्रचलित हैं, लेकिन सटीक कुछ कह पाना मुश्किल है.

हिरण्यकश्यप की एक बहन होलिका थी जिसे भगवान ब्रह्मा से एक वरदान मिला था कि उसे कभी अग्नि नहीं जला सकती है. हिरण्यकश्यप ने एक बार अत्यधिक क्रोधित होकर अपनी बहन होलिका को कहा कि वह प्रह्लाद को अपनी गोद में लेकर अग्नि में बैठ जाए, ताकि प्रह्लाद भाग न सके और वह उसी अग्नि में जलकर ख़ाक हो जाए.

कहानियों के अनुसार होलिका ने ऐसा ही किया, लेकिन वह ख़ुद ही जलकर ख़ाक हो गई और प्रह्लाद सकुशल बच गए. होलिका के जलने और प्रह्लाद के बच जाने पर नगरवासियों ने उत्सव मनाया, जिसे छोटी होली के रूप में भी जाना जाता है. इसके बाद जब यह बात फैली तो भगवान विष्णु के भक्तों ने अगले दिन और भी भव्य तरीके से उत्सव मनाया. होलिका के खात्मे से जुड़ा होने के कारण आगे चलकर इस उत्सव का नाम ही होली पड़ गया.

कई कहानियां हैं प्रचलित

पार्वती भगवान शिव से विवाह करने के लिए उनकी तपस्या में लीन थीं लेकिन खुद ध्यानमग्न शिव ने काफी समय तक ध्यान नहीं दिया. ऐसे में कामदेव से रहा न गया और उन्होंने भगवान शिव पर पुष्प बाण चला दिया. ध्यान भंग होने से शिव को इतना गुस्सा आया कि उन्होंने अपनी तीसरी आंख खोल दी और कामदेव भस्म हो गए. कामदेव के भस्म होने पर उनकी पत्नी रति ने कामदेव को जीवित करने की गुहार भगवान शिव से की, इसके अगले दिन क्रोध शांत होने पर शिव ने कामदेव को पुनर्जीवित कर किया. कहा जाता है कि कामदेव के भस्म होने पर होलिका जलाई जाती है, तो उनके जीवित होने की खुशी में रंगों का त्योहार होली मनाई जाती है.

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