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प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का हालिया अमेरिकी दौरा भारतीय प्रधानमंत्रियों के सफलतम अमेरिकी दौरों में काफी ऊपर रखा जाएगा। अव्वल तो अब वे अमेरिकी कांग्रेस को दो बार संबोधित करने वाले पहले भारतीय प्रधानमंत्री बन गए हैं।

बेशक लोकतंत्र में जनादेश से चुनी हुई सरकार का ये विशेषाधिकार होता है कि वो जनता को क्या और कैसी सुविधाएं दे, लेकिन अर्थव्यवस्था के जानकार इसे देश-राज्य की आर्थिक स्थिति के लिए गंभीर चेतावनी बता रहे हैं।

पिछले दिनों वाशिंगटन के व्हाइट हाउस में हुई प्रेस वार्ता में एक दिलचस्प और बेहद महत्वपूर्ण वाकया इतिहास के पन्नों में दर्ज हो गया।

समस्या यह है कि युद्ध को शुरू हुए सवा साल से ज्यादा वक्त बीत गया है लेकिन किसी को भी यह नहीं पता कि युद्ध रुकेगा कैसे? इतिहास में कई बार दुनिया का चौधरी बन चुका अमेरिका भी इस बार लाचार होकर भारत की ओर देख रहा है।

नया संसद भवन इस लिहाज से भी बेहद खास हो जाता है कि अब हम भी उन चुनिंदा देशों में शामिल हो गए हैं, जिसके पास गुलामी से मिली आजादी के बाद खुद का बनाया हुआ संसद भवन होगा।

अगर पाकिस्तान में आज चुनाव होते हैं तो सत्ता में इमरान की वापसी तय है। इसलिए भी इमरान की पार्टी पीटीआई का पूरा जोर पाकिस्तान में जल्द आम चुनाव करवाने का है।

बीजेपी के नजरिए से इस हार में कई बड़े सबक हैं। चुनाव-दर-चुनाव बीजेपी अपनी जीत के लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के करिश्मे पर जरूरत से ज्यादा निर्भर हो चुकी है।

आठ दशकों से अमेरिका दुनिया का सबसे ताकतवर और सबसे अमीर मुल्क बना रहा लेकिन युद्ध की तैयारियों और अत्याधुनिक और महंगे हथियारों के दम पर दुनिया पर राज करने के मंसूबे ने आज उसे भी कंगाली के कगार पर ला दिया है।

हालात ये हैं कि अगर चीन ताइवान पर हमला कर दे तो जर्मन अर्थव्यवस्था के सामने सप्लाई चेन का ऐसा गंभीर संकट खड़ा हो सकता है जिसके मुकाबले में रूस-यूक्रेन संघर्ष के प्रभाव भी बौने साबित होंगे।

कनाडा का सरकारी आंकड़ा बताता है कि बीते कुछ वर्षों में उनके देश में एंटी-हिंदू नैरेटिव में 72 फीसद की तेजी आई है. माना जा रहा है कि इसकी प्रमुख वजह खालिस्तानी समर्थकों का इस्लामिक कट्टरपंथियों से हाथ मिला लेना है.