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आर्थिक मोर्चे पर ‘कुछ बड़ा’ करने का साल

2023 में जो एक चुनौती दिख रही है वो रोजगार के क्षेत्र से आती दिख रही है। हालांकि दुनिया के मुकाबले भारत में बेरोजगारी की स्थिति उतनी भयावह नहीं है लेकिन हालात कोई बहुत अच्छे भी नहीं हैं।

December 31, 2022
indian economy

भारतीय अर्थव्यवस्था (प्रतीकात्मक तस्वीर)

दुनिया में इस समय हमारे आसपास इतना कुछ हो रहा है कि हम सभी एक बार फिर कई मोर्चों पर एक अस्पष्ट स्थिति का सामना कर रहे हैं। एक तरफ रूस-यूक्रेन युद्ध खत्म होता नहीं दिख रहा है तो दूसरी ओर कोविड की एक नई लहर की शुरुआत आगे की राह को धूमिल बना रही है।

शुक्र है इस चुनौतीपूर्ण दौर में भी हमारी अर्थव्यवस्था का मोर्चा उम्मीद की किरण से धीरे-धीरे रोशन हो रहा है। जैसे-जैसे 2023 करीब आ रहा है, भारतीय अर्थव्यवस्था की पुरानी चुनौतियां नई उपलब्धियों का मार्ग प्रशस्त कर रही हैं। हाल के महीनों में आम अवाम को दंश की तरह दर्द देने वाली महंगाई उल्लेखनीय रूप से कम हो गई है, सरकार का खजाना अपेक्षा के अनुरूप विकसित हो रहा है और घरेलू ऋण की मांग कई वर्षों में सबसे तेज गति से बढ़ रही है।

विपरीत वैश्विक हालात के बावजूद भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए सामान्य अनुमान है कि 2023 में ये 4.8 फीसद से 5.9 फीसद की सीमा में बढ़ सकती है। 1.8 फीसद अनुमानित वैश्विक विकास की तुलना में यह काफी बेहतर स्थिति दिखाई देती है। ऐसे समय में जब ज्यादातर अर्थव्यवस्थाओं के लिए पूर्व के अनुमान घटाए जा रहे हैं, तब विश्व बैंक ने भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए अपना अनुमान 6.5 से बढ़ाकर 6.9 कर दिया है। वैश्विक उथल-पुथल के बीच भारत के विकास को लेकर किसी भी अंतरराष्ट्रीय एजेंसी की सोच में बदलाव का यह पहला उदाहरण है, वरना ज्यादातर अनुमान 6 फीसदी से कम विकास दर के संकेत दे रहे हैं। विश्व बैंक भी पिछले 3 बार से अपनी विश्व आर्थिक आउटलुक रिपोर्ट में 2023 के लिए भारत के विकास पूर्वानुमान को लगातार कम कर रहा था।

इस संशोधन की वजह यह है कि वैश्विक झटकों के बीच भी भारतीय अर्थव्यवस्था चट्टान की तरह डटकर खड़ी रही है। संशोधित अनुमानों में दूसरी तिमाही की अपेक्षा से बेहतर नतीजों का भी हाथ रहा है। भारतीय अर्थव्यवस्था की ताकत कई संकेतकों के माध्यम से भी स्पष्ट हो रही है। घरेलू मांग में सुधार हुआ है। विकसित अर्थव्यवस्थाओं से उलट ये अब पूर्व-कोविड स्तर के करीब पहुंच गई है। विनिर्माण और सेवाओं, दोनों क्षेत्र में अब लंबे समय से स्थिरता है। जीएसटी संग्रह बजट अनुमानों को पीछे छोड़ते दिख रहे हैं। कॉरपोरेट देनदारियां 9 साल के निचले स्तर पर हैं और बैंकों ने पूंजी जुटाई है। विदेशी मुद्रा भंडार भी पर्याप्त हैं और जीडीपी के लिए बाहरी ऋण अन्य देशों की तुलना में कम है। सुधार की गति पिछले तीन वर्षों में मजबूत रही है और देश में 2024 के बाद अगले पांच वर्षों के लिए राजनीतिक स्थिरता के अनुमानों के बीच इसके आगे भी बने रहने की उम्मीद दिखती है।

2023 से आगे भारत उन तीन देशों में शामिल होने जा रहा है जिनकी अर्थव्यवस्था में सालाना 400 अरब डॉलर की बढ़त होगी। 2028 के बाद यही आंकड़ा 500 अरब डॉलर होने के आसार हैं। मॉर्गन स्टेनली का अनुमान है कि भारत 2027 तक दुनिया की तीसरी बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की राह पर है। इस रेस में जर्मनी और जापान अब पीछे छूट जाएंगे। एसबीआई की रिसर्च पेपर भी कहती है कि भारत 2027 तक जर्मनी को पीछे छोड़कर चौथी और 2029 तक जापान को पीछे छोड़कर तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगा। मौजूदा समय में भारतीय अर्थव्यवस्था का आकार 3 ट्रिलियन डॉलर है और 2047 तक इसके 20 ट्रिलियन डॉलर अर्थव्यवस्था बनने का लक्ष्य हैजिसके लिए 7 से 7.5 फीसदी सालाना विकास दर की जरूरत होगी।

लेकिन इस मजबूती के बीच भी भारत को लगातार सतर्क रहने की सलाह है। खासकर अगर अमेरिका और दूसरी प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं को मंदी का सामना करना पड़ता है, तो इसका असर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर दिखेगा और भारत भी इससे बच नहीं पाएगा। हमने देखा है कि कैसे यूक्रेन पर रूस के आक्रमण के बाद खाद्य पदार्थों और कच्चे तेल की कीमतों में आशातीत वृद्धि हुई और कई विकासशील अर्थव्यवस्थाओं की तरह भारत भी महंगाई की चपेट में आ गया। कच्चे तेल की कीमतों में निरंतर वैश्विक उछाल ने भारत में भोजन, ईंधन और ऊर्जा के साथ-साथ परिवहन और संचार को भी प्रभावित किया। नवंबर में 5.88 फीसद तक कम होने से पहले महंगाई लगातार दस महीनों के लिए रिजर्व बैंक की 6 फीसद की ऊपरी स्तर से ज्यादा रही। अप्रैल में 7.79 फीसद तक पहुंचकर महंगाई ने आठ साल का उच्चतम स्तर भी देखा।

2023 का एक सुखद पक्ष यह भी रहेगा कि इसकी शुरुआत महंगाई के घटते स्तर से हो रही है। एसबीआई की रिपोर्ट बताती है कि दुनिया के कई विकसित देशों के मुकाबले भारत में महंगाई का असर कम हुआ है। इसकी पुष्टि के लिए एसबीआई ने कुछ आंकड़े दिए हैं जिनके अनुसार सितंबर, 2021 से सितंबर, 2022 के दौरान अमेरिका में खुदरा महंगाई 22.5 डॉलर, ब्रिटेन में 11.4 पाउंड और जर्मनी में 11 यूरो बढ़ी, जबकि भारत में यह 12.1 रुपये बढ़ी। विदेशी मुद्राओं को रुपये में परिवर्तित करके देखें तो इस दौरान यूरोप की दो बड़ी अर्थव्यवस्था वाले देश – जर्मनी में 20 रुपये और यूके में 23 रुपये महंगाई बढ़ गई। आंकड़े बताते हैं कि 2014 से 2022 के दौरान भारत में प्रति व्यक्ति आय 57 फीसदी बढ़ी है, जबकि ब्रिटेन में यह एक फीसदी, फ्रांस में 5 फीसदी, इटली में 6 फीसदी, ब्राजील में 27 फीसदी और जापान में 11 फीसदी तक घटी है।

2023 में जो एक चुनौती दिख रही है वो रोजगार के क्षेत्र से आती दिख रही है। हालांकि दुनिया के मुकाबले भारत में बेरोजगारी की स्थिति उतनी भयावह नहीं है लेकिन हालात कोई बहुत अच्छे भी नहीं हैं। सीएमआईई के अनुसार दिसंबर में ग्रामीण इलाकों में बेरोजगारी दर 8.5% से अधिक रही। शहरों में ये 10 फीसदी के स्तर को भी पार कर गई है। महंगाई और बेरोजगारी आबादी के बड़े हिस्से को परेशान करती है। इस दोहरी चुनौती के बीच कुछ घटनाएं ऐतिहासिक हैं जो इन समस्याओं का समाधान भी बन सकती हैं और भारत की अर्थव्यवस्था को मजबूत भी बना सकती हैं। संयुक्त अरब अमीरात के बाद अब ऑस्ट्रेलिया से भी हमारा मुक्त व्यापार शुरू हो चुका है। जल्द ही रूस के साथ रुपये में व्यापार शुरू होने वाला है। इसके लिए बैंकिंग और लॉजिस्टिक्स संबंधी दिक्कतें दूर की जा रही हैं। साथ ही इलेक्ट्रॉनिक सेक्टर के बाद अब फार्मा एपीआई में भी प्रोडक्शन लिंक इंसेंटिव स्कीम लागू हो चुकी है। ये घटनाएं भारत के आयात-निर्यात को मजबूती देगी। इससे डॉलर की चुनौती का सामना करना आसान होगा। वहीं, कारोबार बढ़ने से रोजगार की भी संभावनाएं पैदा होंगी।

याद कीजिए 2022 की शुरुआत जब विदेशी निवेशक भारतीय बाजार छोड़कर भाग रहे थे। लेकिन अब स्थितियां पलट गई हैं। जनवरी से सितंबर के बीच के 9 महीनों में देश में 42 अरब डॉलर से अधिक का विदेशी निवेश आया। भारत का शेयर बाजार भी एक साल में 4.5 प्रतिशत बढ़ा है। अमेरिका, जापान, हांगकांग और चीन के बाजारों में गिरावट के बीच भारत के स्टॉक मार्केट के 2030 तक दुनिया में सबसे बड़ा हो जाने का अनुमान है। अमेरिका, यूरोप में मंदी की घबराहट के बीच भारत के लिए निर्यात के क्षेत्र में भी सुनहरे अवसर हैं। लैटिन अमेरिका, अफ्रीका और आसियान देश भारत के लिए नया बाजार बन सकते हैं। चीन पर आई कोविड की आपदा भी भारत के लिए दक्षिण एशिया के बाजार में नए अवसर पैदा कर रही है। कहा जा सकता है कि नए साल में कुछ नया और बड़ा करने का दायरा भी धीरे-धीरे बड़ा होता जा रहा है।

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