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फिनलैंड बना नाटो का मेंबर, एक नए युद्ध का डर!

फिनलैंड को नाटो की सदस्यता देने से तमतमाया रूस अपनी सैन्य शक्ति को लगातार बढ़ा रहा है। ऐसे में फिनलैंड के बाद अगर यूक्रेन को भी नाटो की सदस्यता दी गई तो ये रूस को खुली चुनौती होगी जिसका अंजाम महाविनाश हो सकता है।

April 8, 2023
finland joins nato

रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन

पश्चिमी यूरोप का छोटा सा देश फिनलैंड दुनिया के सबसे बड़े सुरक्षा गठबंधन उत्तर अटलांटिक संधि संगठन (नाटो) में शामिल हो गया है। 4 अप्रैल, 1949 को अस्तित्व में आने के बाद से नाटो का लगातार विस्तार होता जा रहा है और नए देश इसमें जुड़ते चले जा रहे हैं, लेकिन ठीक 74 साल बाद फिनलैंड का नाटो में शामिल होना ऐतिहासिक घटना है। नाटो की सदस्यता हासिल करने की ललक यूक्रेन पर रूस के आक्रमण की वजह बनी क्योंकि रूस के राष्ट्रपति पुतिन अपने दरवाजे पर नाटो को नहीं चाहते थे, मगर फिनलैंड के नाटो का सदस्य बनते ही अमेरिका के नेतृत्व वाला गठबंधन अब रूस की पश्चिमी सीमा पर पहुंच गया है। फिनलैंड और रूस के बीच 1340 किमी की साझा सीमा है जो नाटो के बाकी देशों की रूस से मिलती 1215 किमी की सीमा से भी लंबी है। बदले हालात में नाटो देशों की सम्मिलित सीमाएं अब 2,555 किमी हो चुकी हैं, जो रूस से सटी होंगी। नॉर्वे, लातविया, पोलैंड और लिथुआनिया के बाद अब फिनलैंड से लगती रूस की सीमा से उत्तर और उत्तर पश्चिमी सीमा पर नाटो की मौजूदगी हो गई है। इसके साथ ही बाल्टिक सागर में अब नाटो के सात देश हो गए हैं जिससे रूस पर खतरा और बढ़ गया है। नाटो चार्टर का आर्टिकल 5 कहता है कि किसी भी सदस्य देश पर हमला पूरे संगठन पर हमला माना जाएगा जिसका सामना सभी देश मिलकर करेंगे। सुरक्षा का ये आश्वासन ही फिनलैंड को नाटो की शरण में ले गया है।

ऐसे में कई सवाल खड़े होते हैं। क्या दुनिया एक और विश्वयुद्ध के मुहाने पर है? क्या अमेरिका-इंग्लैंड के नेतृत्व वाले नाटो ने रूस को भड़का दिया है? फिनलैंड को नाटो का मेम्बर बनाकर विश्वयुद्ध को दावत दे दी गई है? यूक्रेन पर रूसी हमले के बाद से दुनिया पर मंडरा रहे विश्वयुद्ध के खतरे को स्वयं नाटो ने अपने 75वें जन्मदिन पर अवश्यम्भावी बना दिया है? या फिर ऐसा है कि अब रूस की खैर नहीं, और नाटो के सामने रूस को झुकना ही होगा? इन सवालों पर बात करें उससे पहले नाटो की पृष्ठभूमि जान लेना जरूरी है।

नाटो का गठन 4 अप्रैल 1949 को हुआ लेकिन इसकी नींव दूसरे विश्व युद्ध के समय ही पड़ गई थी। दरअसल, दूसरे विश्व युद्ध के बाद सोवियत संघ ने पूर्वी यूरोप के इलाकों से सेनाएं हटाने से इनकार कर दिया और 1948 में बर्लिन को भी घेर लिया। इसके बाद अमेरिका ने सोवियत संघ की विस्तारवादी नीति को रोकने के लिए 12 देशों के साथ नाटो की शुरुआत की। इनमें अमेरिका के अलावा ब्रिटेन, फ्रांस, कनाडा, इटली, नीदरलैंड, आइसलैंड, बेल्जियम, लक्जमबर्ग, नॉर्वे, पुर्तगाल और डेनमार्क शामिल थे। इसके गठन का मुख्य उद्देश्य तत्कालीन सोवियत संघ के खतरे से मित्र देशों की रक्षा करना था। 1991 में सोवियत संघ के पतन के बाद नाटो की सदस्य संख्या में तेजी से बढ़ोतरी हुई। कभी सोवियत संघ के सैटेलाइट स्टेट रहे 11 देश और तीन पूर्व सोवियत देश नाटो में शामिल हुए। इससे नाटो के सदस्य देशों की संख्या बढ़कर 26 हो गई। इस अवधि में तीन और देश नाटो से जुड़े और 2020 में मैसेडोनिया के शामिल होने के साथ ही सदस्य देशों की संख्या 30 तक पहुंच गई। इस समय नाटो के 29 सदस्य देश यूरोपीय और दो अमेरिकी महाद्वीप में स्थित हैं।

2014 में नाटो देशों ने तय किया था कि 2025 तक वो इसके रक्षा व्यय के लिए अपनी जीडीपी का 2% योगदान देंगे जिसे अमेरिका, ब्रिटेन, ग्रीस और पोलैंड ने पूरा किया है। फिलहाल सबसे ज्यादा अमेरिका 811,140 डॉलर (3.52%), ब्रिटेन 72,765 डॉलर (2.29%), जर्मनी 64,785 (1.53%) और फ्रांस 58,729 डॉलर (2.01%) का योगदान दे रहे हैं।

नाटो की सैन्य क्षमता पर नजर डालें तो इसमें सबसे बड़ा योगदान जापान का है जिसके 55 हजार सैनिक नाटो की सेवा में रहते हैं। दूसरे नंबर पर जर्मनी है जिसके 35 हजार सैनिक हैं। नाटो ने अब तय किया है कि रूस की सीमा पर वह 3 लाख सैनिक तैनात करेगा जो रूस को यह कतई स्वीकार्य नहीं हो सकता। हालांकि नाटो के महासचिव जेन्स स्टोल्टेनबर्ग ने कहा है कि बिना फिनलैंड की मर्जी के नाटो वहां अपने सैनिक तैनात नहीं करेगा लेकिन इसमें दो राय नहीं कि नाटो के हथियार अब फिनलैंड में तैनात होंगे जिसे लेकर रूस ने पहले ही चेतावनी दी है कि अगर ऐसा हुआ तो रूस भी पश्चिमी सीमा पर हथियारों की तैनाती बढ़ाएगा।

करीब सात दशक तक तटस्थ देश रहा फिनलैंड अचानक नाटो की सदस्यता के लिए क्यों आतुर हुआ उसका कारण है रूस का यूक्रेन पर आक्रमण। फरवरी 2022 में यूक्रेन पर रूस के आक्रमण के फौरन बाद 22 मई, 2022 को फिनलैंड ने नाटो की सदस्यता के लिए आवेदन किया और केवल एक साल में ही फिनलैंड को सदस्यता दे दी गई। फिनलैंड भले ही छोटा सा देश हो लेकिन सैन्य ताकत की दृष्टि से काफी सक्षम है। आईआईएएस मिलिट्री बैलेंस 2022 के मुताबिक, फिनलैंड की कुल सेना 2,57,250 है जिसमें 19,250 एक्टिव और 2,38,000 रिजर्व सैनिक हैं। साथ ही उसके पास 100 मेन बैटल टैंक, 107 कॉम्बैट एयरक्राफ्ट, 19 अटैक हेलिकॉप्टर, 613 आर्मर्ड पर्सनल कैरियर और 672 आर्टिलरी है। फिनलैंड ने ये तैयारी रूस से संभावित खतरे को देखते हुए ही कर रखी है।

दरअसल 1809 में रूस के तत्कालीन शासक एलेक्ज़ेंडर-I ने फिनलैंड पर कब्ज़ा कर लिया था। 6 दिसंबर, 1917 को रूसी क्रांति के दौरान फिनलैंड आजाद हुआ लेकिन रूस की नजर फिनलैंड पर बनी रही। दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान भी सोवियत संघ ने फिनलैंड पर आक्रमण किया था लेकिन फिनलैंड ने उसे नाकाम कर दिया था। 1948 में सोवियत संघ के साथ फ्रेंडशिप समझौते के तहत फिनलैंड ने खुद को तटस्थ घोषित कर दिया था लेकिन यूक्रेन पर रूस के हमले के बाद अपनी सुरक्षा को लेकर चिंतित फिनलैंड ने नाटो की शरण में जाने का निर्णय लिया। खास बात ये है कि फिनलैंड के 80% लोगों ने इसका समर्थन किया। जैसी कि उम्मीद थी रूस ने धमकी दी कि फिनलैंड का नाटो में शामिल होना युद्ध थोपने जैसा होगा जिसके नतीजे परमाणु युद्ध के रूप में भयावह हो सकते हैं। अब वही धमकी खतरा बनकर सामने है।

नाटो की सदस्यता और सहयोग के मुद्दे पर ही यूक्रेन को ‘सबक’ सिखा रहे रूस को ये सबक सिखाने की नई पहल लगती है। ऐसे समय में जब रूस नाटो से और नाटो के सदस्य रूस से हमले के डर में जी रहे हैं तो इसके परिणाम युद्ध से इतर नहीं हो सकते। अगर युद्ध हुआ तो इसके परमाणु युद्ध में बदलने के पूरे आसार हैं। और परमाणु युद्ध का मतलब है विनाश।

2014 में क्रीमिया पर कब्जे के बाद से ही रूस को नाटो ने अलग-थलग कर दिया था। यूरोपीय यूनियन से भी रूस की दूरी बन गई थी, इसके बावजूद ऊर्जा जरूरतों के लिए यूरोपियन यूनियन रूस पर निर्भर रहा है। यहां तक कि यूक्रेन संकट के दौर में भी रूस के लिए डॉलर की जरूरतें यही देश पूरी करते रहे हैं। मगर, 4 अप्रैल 2023 के बाद से स्थिति रातों रात बदल चुकी है। पूरी दुनिया एक बार फिर दो धड़ों में बंट गई है।

रूस के साथ चीन, उत्तर कोरिया जैसे परमाणु हथियार संपन्न और ईरान जैसे अमेरिका विरोधी देश हैं तो दूसरी ओर 31 देशों वाला संगठन नाटो। ऐसे में सवाल उठता है कि दुनिया की बड़ी एशियाई शक्ति भारत किधर है? यूक्रेन युद्ध से पहले रूस से महज 2% कच्चा तेल खरीद रहा भारत आज अपनी जरूरत का 27 प्रतिशत कच्चा तेल खरीद रहा है। यह खरीदी भी डॉलर के बजाए रुपये में हो रही है। यूक्रेन युद्ध पर भारत की प्रतिक्रिया जुबानी रही है और वह भी बेहद संतुलित। भारत ने हमेशा शांति की वकालत की है और मध्यस्थता के लिए भी वो तैयार दिखा है। मगर, रूस की निन्दा करने या रूस के खिलाफ कुछ भी बोलने से परहेज किया है। वहीं, यूक्रेन के साथ हमदर्दी दिखाने में भी भारत पीछे नहीं रहा है।

शीतयुद्ध के दौरान भी भारत गुट निरपेक्ष आंदोलन के तहत तटस्थ भूमिका में रहा और अब भी उसका स्टैंड कुछ वैसा ही है। संभावित विश्वयुद्ध में शामिल होना भारत को सूट नहीं करता। मगर, क्या इससे अलग रह पाना भारत के लिए संभव होगा? क्वाड समेत कई मंचों पर भारत अमेरिका के साथ खड़ा है। चीन की ओर से भारत की सीमा पर जो खतरे हैं उसे संतुलित करने के लिए भी यह कूटनीति जरूरी मानी जाती रही है। इसी नजरिए से रूस के साथ मैत्री की भी अहमियत है। रूस के चीन और भारत दोनों देशों के साथ नजदीकी संबंध हैं इसलिए रूस की मदद से भी भारत अपने पड़ोसी देश चीन पर अंकुश रख सकता है।

पाकिस्तान अब भारत के लिए खतरा नहीं रह गया है और न ही पाकिस्तान की जियो पॉलिटिक्स में वह अहमियत रह गई है जो 2014 से पहले हुआ करती थी। जाहिर है नाटो और रूस के बीच तनाव और विश्वयुद्ध की स्थिति में भारत दबावरहित स्वतंत्र निर्णय लेने की स्थिति में है। भारत ऐसी किसी बाध्यता में नहीं है कि वह नाटो या रूस में से किसी के साथ खड़ा हो।

चीन के साथ भारत का कारोबार 136 अरब डॉलर तो अमेरिका के साथ 125 अरब डॉलर तक जा पहुंचा है। वहीं रूस के साथ भारत का कारोबार 10 अरब डॉलर से बढ़कर 40 अरब डॉलर तक जा पहुंचा है। इससे पता चलता है कि भू-राजनीतिक स्थिति को संतुलित करने में भारत सफल है और देश के हित को ध्यान में रखकर ही भारत सरकार अपने कदम आगे बढ़ा रही है। वह किसी देश के दबाव में नहीं है।

फिलहाल स्थिति विस्फोटक है जहां एक छोटी सी चिंगारी महायुद्ध की शक्ल ले सकती है। फिनलैंड को नाटो की सदस्यता देने से तमतमाया रूस अपनी सैन्य शक्ति को लगातार बढ़ा रहा है। ऐसे में फिनलैंड के बाद अगर यूक्रेन को भी नाटो की सदस्यता दी गई तो ये रूस को खुली चुनौती होगी जिसका अंजाम महाविनाश हो सकता है।

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