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नेपाल में नागरिकता बिल को लेकर राष्ट्रपति और सरकार के बीच ठनी

नेपाल में नागरिकता बिल को लेकर राष्ट्रपति और सरकार के बीच ठनी

राष्ट्रपति विद्या देवी भंडारी का अड़ियल रुख

काठमांडू  – नेपाल में राष्ट्रपति और सरकार के बीच टकराव के हालात बन रहे हैं.इसके पीछे है नागरिकता  संशोधन बि का मसला. नेपाल की संसद ने ये बिल पारित किया था, जिस पर दस्तखत करने से राष्ट्रपति विद्या देवी भंडारी ने इनकार कर दिया. उन्होंने बिल पर कई आपत्तियां दर्ज कराते हुए उसे पुनर्विचार के लिए संसद के पास भेज दिया था. राष्ट्रपति विद्या देवी भंडारी ने नागरिकता विधेयक को प्रमाणित करने से इनकार किए जाने के बाद नेपाल की राजनीति टकराव की राह पर है. प्रतिनिधिसभा और नेशनल असेंबली ने पारित विधेयक का उद्देश्य नेपाल में नागरिकता के बिना रहने वाले सैकड़ों हजार लोगों को नागरिकता प्रदान करना है. विद्या देवी भंडारी, जो नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी-यूएमएल की वरिष्ठ नेता हुआ करती थीं,वह पार्टी अब विपक्ष में है.

शेर बहादुर देउबा सरकार इस विधेयक के भी खिलाफ है. राष्ट्रपति के इनकार के बाद सत्तारूढ़ गठबंधन ने निष्कर्ष निकाला कि विधेयक को प्रमाणित करने से इनकार करने का भंडारी का कदम संघीय संसद का अपमान था था.सत्तारूढ़ गठबंधन में शामिल नेपाली कांग्रेस, सीपीएन (माओवादी सेंटर), सीपीएन (यूनाइटेड सोशलिस्ट) और जनता समाजवादी पार्टी ने बुधवार को एक संयुक्त बयान जारी कर राष्ट्रपति के इस कदम का विरोध किया और इसे ‘असंवैधानिक’ कहा.

उन्होंने कहा कि राष्ट्रपति का फैसला संवैधानिक प्रावधान का उल्लंघन है. राष्ट्रीय जनमोर्चा पार्टी को छोड़कर सत्तारूढ़ गठबंधन के चार दलों ने बयान पर हस्ताक्षर किए हैं. बयान में कहा गया है, “राष्ट्रपति के इस असंवैधानिक कदम ने लोगों की चुनी गई संघीय संसद का अपमान और अवमूल्यन किया है.पार्टियों ने कहा कि राष्ट्रपति के उठाए गए कदम ने नेपाली माता-पिता के बच्चों को नागरिकता के संवैधानिक अधिकार से वंचित कर दिया है. उन्होंने आगे राष्ट्रपति पर संविधान सभा से घोषित संविधान के मूल मूल्यों पर हमला करने का आरोप लगाया.

सत्तारूढ़ गठबंधन ने इस मुद्दे पर चर्चा के लिए घटक दलों की बैठक बुलाई थी, उसके बाद यह बयान जारी किया गया. संसद ने राष्ट्रपति भंडारी को भेजे गए विधेयक को प्रमाणित करने की समय सीमा मंगलवार मध्यरात्रि को समाप्त हो गई. संवैधानिक प्रावधान के अनुसार, राष्ट्रपति को 15 दिनों के भीतर कानून को प्रमाणित करना होता है.स्पीकर अग्नि प्रसाद सपकोटा ने 5 सितंबर को दूसरी बार बिल को राष्ट्रपति कार्यालय भेजा, क्योंकि संविधान के अनुच्छेद 113, उपधारा 4 में उल्लेख किया गया है. कि यदि वही बिल दूसरी बार प्रमाणीकरण के लिए प्रस्तुत किया गया हो तो राष्ट्रपति को इसे प्रमाणित करना होगा.

राष्ट्रपति भंडारी ने 14 अगस्त को प्रतिनिधिसभा और नेशनल असेंबली ने पारित किए जाने के लिए भेजे जाने के बाद विधेयक वापस कर दिया था. राष्ट्रपति ने भले ही पुनर्विचार के लिए बिल सदन को लौटा दिया हो, लेकिन हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव्स और नेशनल असेंबली ने इसमें कोई बदलाव नहीं किया है.

-आईएएनएस / भारत एक्सप्रेस

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