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सांसदों का भविष्य तय करेगा मिशन 2022!

भले ही भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व लगातार तीसरी बार निगम में जीत के लिए दिन-रात एक किए हुए है, लेकिन दिल्ली भाजपा उसकी उम्मीदों पर खरी नहीं उतर पा रही है.

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फोटो-बीजेपी समर्थक

मिशन 2022 में भाजपा की चूक कई मौजूदा सांसदों के लिए बड़ी चुनौती साबित हो सकती है. ख़ास तौर पर सांसदों को ऐसे उम्मीदवारों की हार बहुत भारी पड सकती है, जिन्हें उम्मीदवार बनवाने के लिए उन्होंने पूरा जोर लगा दिया था. सूत्रों की मानें तो भाजपा के संगठन महामंत्री दिल्ली के कई सांसदों की वकालत से नाखुश हैं. क्योंकि सर्वे रिपोर्ट में ऐसे ज्यादातर नेताओं की रिपोर्ट नकारात्मक मैली है. दीगर है कि उम्मीदवार तय करने के लिए हुई भाजपा चुनाव समिति की बैठक में कई सांसद पार्टी पदाधिकारियों से भी भिड़ गए थे.

भाजपा की प्रतिष्ठा है मिशन 2022

गौरतलब है कि दिल्ली भाजपा 1998 से ही दिल्ली फ़तेह करने का सपना देख रही है. लेकिन पार्टी नेताओं की गुटबाजी और उम्मीदवार चयन में लगने वाले आरोप उसके रास्ते की सबसे बड़ी बाधा साबित हो रहे हैं. हालांकि विभाजित दिल्ली नगर निगम में लगातार दो बार मिली जीत भाजपा के लिए सुखद अनुभव रही है. 2017 में मनोज तिवारी के नेतृत्व में पार्टी ने 2012 के मुकाबले 46 सीटें ज्यादा जीती थी. मगर इस बार कांग्रेस की बेहद कमजोर स्थिति और अरविन्द केजरीवाल से मिल रही सीधी चुनौती के कारण निगम में हैट्रिक की ख्वाब कांटे की टक्कर में फंस गया है. दीगर है कि दिल्ली के स्थानीय चुनाव में सीधी लड़ाई के दौरान भाजपा जीत की स्थिति में नजर नहीं आती है.

टिकट वितरण पर सवाल

भले ही भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व लगातार तीसरी बार निगम में जीत के लिए दिन-रात एक किए हुए है, लेकिन दिल्ली भाजपा उसकी उम्मीदों पर खरी नहीं उतर पा रही है. चाहे वह घोषणा के बाद निगम उम्मीदवार बदलने का मामला हो या अंतिम समय सिम्बल बांटने में हुई देरी या फिर 18 उम्मीदवारों के चयन में हुई माथापच्ची. इतना ही नहीं अंदरूनी झगडे के कारण पार्टी अध्यक्ष आदेश गुप्ता को घोषित किए गए छह में तीन जिलाध्यक्षों तक को महज 24 घंटे के भीतर बदलना पड गया था.

सांसदों ने बनाया दबाव !

पार्टी सूत्रों का कहना है कि निगम चुनाव में अपने खास लोगों को टिकट दिलाने के लिए कई सांसदों ने संगठन पर अनुचित दबाव बनाने में भी कसर नहीं छोड़ी. एक सांसद ने तो भरी बैठक में एक पार्टी पदाधिकारी को गाली तक दे दी. इसके अलावा एक अन्य संसद ने एक अन्य नेता को धमकाने की कोशिश की तो एक ने अपने जिलाध्यक्षों पर पैसे लेकर टिकटों की सिफारिश करने का आरोप ही जड़ दिया. खास बात है कि जिन चहेतों को उम्मीदवार बनाने के लिए दबाव बनाया गया, पार्टी को उनकी फिल्ड रिपोर्ट नकारात्मक मिली है.

सिफारिशी टिकटों का होगा आंकलन

दरअसल निगम चुनाव में कई दर्जन ऐसे नेताओं को उम्मीदवार बनाया गया है जिनकी पैरवी पार्टी सांसदों और विधायकों के अलावा पदाधिकारियों ने की थी. सूत्रों का कहना है कि ऐसे तमाम उम्मीदवारों के चुनाव परिणाम, सिफारिशी नेताओं के संगठन में भविष्य का भी आंकलन करेंगे. ऐसे नेताओं की हार-जीत उनकी पैरवी करने वाले नेताओं के कद को कम या ज्यादा करने में भी निर्णायक हो सकती है.

केंद्रीय स्तर पर नाराजगी

भाजपा के एक वरिष्ठ नेता के अनुसार कई सांसदों के अनुचित दबाव से केंद्रीय नेता खुश नहीं हैं. संगठन के पास मौजूद संभावित उम्मीदवारों की सर्वे रिपोर्ट में बहुत से ऐसे नेताओं का नाम ही मौजूद नहीं था, जिन्हें मैदान में उतारा गया है. ऐसे में “आप” से मिल रही नजदीकी चुनौती के बीच हैट्रिक का ख्वाब देख रही भाजपा के एक बड़े नेता नाखुश हैं. सूत्रों की मानें तो 07 दिसम्बर को पार्टी के सपनों पर पानी फिरता है तो 2024 में कई सांसदों की घर वापसी भी हो सकती है.

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