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विपक्षी नेता ही जांच एजेंसियों के निशाने पर क्यों ? 2014 से ईडी का एक्शन 4 गुना बढ़ा

पिछले आठ सालों में नेताओं के खिलाफ ईडी का इस्तेमाल चार गुना बढ़ा

पिछले आठ सालों में नेताओं के खिलाफ ईडी का इस्तेमाल चार गुना बढ़ा

नई दिल्ली– इन दिनों भ्रष्टाचार के खिलाफ जांच एजेंसियों की कार्रवाई से भारी हाय-तौबा मची हुई है.दिल्ली से लेकर पश्चिम बंगाल,महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में छापेमारी हुई है.इस कार्रवाई से विपक्ष हक्का –बक्का सा है.तमाम सवाल हवा में तैर रहे हैं.सवाल ये उठ रहे हैं क्या बीजेपी के नेता सारे दूध के धुले हुए हैं या बीजेपी कोई वॉशिंग मशीन है जिसमें शामिल होने बाद नेता बेदाग होकर निकलता है. आज बीजेपी सत्ता में है,कल यूपीए गठबंधन था.जब बीजेपी विपक्ष में थी तब वह सत्ता पक्ष पर जांच एजेंसियों के बेज़ाँ इस्तेमाल का आरोप लगाती थीं,आज कांग्रेस आरोप लगा रही है. आपको याद होगा कि 3 जुलाई को महाराष्ट्र विधानसभा में वोटिंग के दौरान विपक्षी महाविकास अघाड़ी गठबंधन के नेताओं ने ED के खिलाफ बुलंद किये थे. उनका आरोप था कि एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाले शिवसेना गुट ने प्रवर्तन निदेशालय(ED)के डर से बीजेपी से हाथ मिलाया है.

अंग्रेजी अखबार इंडियन एक्सप्रेस ने एक रिपोर्ट प्रकाशित की है,जिसमें शीशे की तरह साफ है कि साल 2014 से अब तक यानी पिछले आठ सालों में नेताओं के खिलाफ ईडी का इस्तेमाल चार गुना बढ़ गया है. इन वर्षों में 121 प्रमुख राजनेता जांच के दायरे में आए हैं, जिनमें से 115 विपक्ष के नेता हैं. इस तरह एनडीए के शासन में ईडी की 95 प्रतिशत कार्रवाई विपक्षी नेताओं पर की गई है.

रिपोर्ट में पिछले 18 सालों में ईडी द्वारा बुक किए गए, गिरफ्तार किए गए और छापेमारी की कार्रवाई का सामना करने वाले नेताओं के रिकॉर्ड की जांच की गई. जिसमें यह पता चला है कि इन वर्षों में जिन 147 प्रमुख राजनेताओं के खिलाफ कार्रवाई की गई है, उनमें से 85 प्रतिशत विपक्षी दल के नेता थे.

यूपीए शासन (2004 से 2014) में ईडी की फेसबुक से अलग आंकड़ा मिलता है. उस दौरान केवल 26 नेताओं की जांच की गई थी, जिनमें से 14 (54 प्रतिशत) विपक्ष के नेता थे.

ईडी के मामलों में बढ़ोतरी लिए मुख्य रूप से प्रिवेंशन ऑफ मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट (पीएमएलए) को जिम्मेदार माना गया है. पीएमएलए 2005 में लागू किया गया है. उसके बाद से कानून को लगातार मजबूत किया गया था.

कई नेताओं ने जांच शुरु होने के बाद पार्टी बदल ली है. लेकिन तालिका में नेताओं को उन राजनीतिक दलों के तहत सूचीबद्ध किया गया था, जिनसे वे जांच शुरु होने के दौरान संबंधित थे. इसे असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा इसकी ताजा मिसाल हैं जो अब बीजेपी में हैं साथ ही असम के मुख्यमंत्री भी हैं. साल 2014 और 2015 में सीबीआई और ईडी ने शारदा चिटफंड घोटाला मामले में हेमंत बिस्वा सरमा से पूछताछ की थी. सीबीआई ने 2014 में उनके घर और कार्यालय पर छापेमारी भी की थी. तब सरमा कांग्रेस नेता हुआ करते थे. अब वह बीजेपी में हैं. पार्टी बदलने के बाद से उनके केस में कोई प्रगति नहीं पाई गई है.

इसी तरह तत्कालीन टीएमसी नेता शुभेंदु अधिकारी और मुकुल रॉय को नारद स्टिंग ऑपरेशन मामले में सीबीआई और ईडी ने जांच के दायरे में रखा था. अधिकारी और रॉय पिछले साल पश्चिम बंगाल चुनाव से पहले बीजेपी में शामिल थे. तब से उनके मामलों में कोई महत्वपूर्ण प्रगति नहीं देखने को मिली है. रॉय वापस टीएमसी में शामिल हो चुके हैं.

एनसीपी से शरद पवार, अजीत पवार, अनिल देशमुख, नवाब मलिक और प्रफुल्ल पटेल की जांच जारी है. शिवसेना के संजय राउत और अनिल परब भी जांच के दायरे में है. बिहार के पूर्व सीएम लालू प्रसाद और उनका परिवार भी केंद्रीय जांच एजेंसी के रडार पर है.

वहीं, रिकॉर्ड से यह भी पता चलता है कि ईडी ने बीजेपी नेता सुधांशु मित्तल की पत्नी के भाई ललित गोयल के खिलाफ भी मामला दर्ज किया है. उन पर कथित तौर पर निवेशकों और घर खरीदारों को ठगने का आरोप लगा है.

-भारत एक्सप्रेस

 

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