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Holi 2023: इस गांव में होली के दिन मनाई जाती है दीपावली, छुड़ाए जाते हैं पटाखें, अनोखी है परम्परा

Sitapur: सीतापुर के एक गांव में आदिकाल से परम्परा चली आ रही है. होलिका दहन से पहले यहां जमकर पटाखे फोड़े जाते हैं. इसके बाद लोग अपने घरों को लौट जाते हैं.

Holi 2023

पटाखे जलाते लोग

जितेंद्र सैनी

Holi 2023: देश के तमाम हिस्सों में जहां एक ओर होली का रंग उड़ रहा है और लोग हर्षोल्लास के साथ होली मना रहे हैं. पापड़-गुझिया का स्वाद चख रहे हैं तो दूसरी ओर उत्तर प्रदेश में एक गांव ऐसा भी है, जहां होली के दिन दीपावली मनाई जाती है और रात में जमकर पटाखे फोड़े जाते हैं. इस अनोखी परम्परा में लोग दीपावली होलिका दहन के बाद मनाते हैं.

इस अनोखी परम्परा की खबर उत्तर प्रदेश (यूपी) के सीतापुर के मिश्रिख तहसील में स्थित दधीच कुंड से सामने आ रही है. यहां पर होलिका दहन के बाद लोग रंग नहीं खेलते हैं बल्कि दीपावली की तरह पटाखे छुड़ाते हैं. यह हैरान कर देने वाली खबर पूरे प्रदेश में चर्चा का विषय बनी हुई है. रंगो के इस त्यौहार होली में दीपावली का त्यौहार मनाने की परम्परा यहां आदिकाल से चली आ रही है. इस पूरी परम्परा को 84 कोसी परिक्रमा से जोड़कर देखा जाता है. इस अनोखी परम्परा के वीडियो सोशल मीडिया पर जमकर वायरल हो रहे हैं, जिन्हें देखकर प्रतीत होता है कि ये होली का पर्व नहीं बल्कि दीपावली का पर्व है.

ये है मान्यता

यहां के लोगों के मुताबिक मान्यता है कि सीतापुर के मिश्रिख तहसील में स्थित दधीच कुंड में 15 दिनों तक चलने वाली 84 कोसी परिक्रमा के बाद पंच कोसीय परिक्रमा कुंड के इर्द-गिर्द ये परम्परा घूमती है. बताते हैं कि इसी के समापन अवसर पर श्रद्धालु होलिका दहन करने के बाद अपने-अपने घरों को वापस लौट जाते हैं, लेकिन इससे पहले होलिका दहन के पहले से लेकर बाद तक दधीच कुंड पर जमकर आतिशबाजी की जाती है. इसी क्रम में देर सोमवार की देर रात होलिका दहन के वक्त दधीच कुंड पर जमकर आतिशबाजी की गई. इस मौके पर साधु-संतों के साथ ही स्थानीय जनप्रतिनिधियों ने भी हिस्सा लिया.

ये है पौराणिक कथा

पौराणिक कथाओ के अनुसार देवासुर संग्राम के वक़्त राक्षसों के संहार के लिए अपनी अस्थियां दान करने वाले महर्षि दधीची की तपोस्थली मिश्रिख स्थित दधीची कुंड पर होली से ठीक पूर्व होने वाले एक पखवारे के होली मेले का अपना अलग महत्त्व होता है. इस तीर्थ के इर्द गिर्द इन 15 दिनों के दौरान होने वाली चौरासी कोस व पंचकोसी परिक्रमाओ के बाद मिश्रिख पहुंचने वाले लाखो तीर्थ यात्री प्रतिवर्ष यहाँ के होली मेला में डेरा डालते है, जिसका समापन होलिका दहन से पूर्व घंटो चलने वाली आतिशबाजी के साथ होता है. आतिशबाज़ी भी कोई मामूली नही बल्कि ऐसी की बस देखते ही रह जाओ. दधीची कुंड पर होने वाली इस आतिशबाजी के पूर्व लाखों लोगो की मौजूदगी में पहले तीर्थ की आरती के साथ पूजन किया जाता है इसके बाद जितने भी परिक्रमार्थी आते है सब आतिशबाजी के इस कार्यक्रम को देखते है. जिला प्रशासन के आलाधिकारी भी इस पूरे कार्यक्रम में हमेशा मौजूद रहते है.

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परिक्रमा के समापन पर होता है आयोजन

होलिका दहन के वक्त ही मिश्रिख में चौरासी कोसीय व पंचकोसीय परिक्रमा का समापन भी होता है. बता दें कि परिक्रमा के दौरान लोग तीर्थ में स्नान करने आते है. 15 दिनों तक पैदल 84 कोस की परिक्रमा करने के बाद तीर्थ यात्री यहाँ से इस समापन के बाद अपने अपने घरो को वर्ष भर की खुशहाली का सपना लेकर इस प्रतिज्ञा के साथ वापस होते है कि मिश्रिख तीर्थ में अगले वर्ष आने का उनका कार्यक्रम फिर बने और वे पुण्य के भागीदार बने.

-भारत एक्सप्रेस

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