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Gwalior News: बहुत खास है ये इमली का पेड़, तानसेन ने भी खाई थी इसकी पत्तियां, खासियत हैरान कर देगी

Gwalior News: कई कलाकार यहां से इमली के पत्ते मंगवाकर खाते हैं. छह सौ सालों से यह पेड़ संगीतकारों के लिए आस्था का केंद्र बना हुआ है.

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तानसेन मकबरा के पास मौजूद इमली का पेड़

Gwalior News: मध्य प्रदेश के ग्वालियर में मौजूद तानसेन मकबरा के पास स्थित इमली का पेड़ संगीत प्रेमियों के लिए बेहद खास है. संगीत प्रमियों के लिए ये इमली का पेड़ किसी जड़ी बूटी से कम नही है. कहा जाता है कि तानसेन इसी पेड़ के नीचे बैठकर रियाज करते थे और ध्रुपद के राग सुनाते थे. जानकार बताते हैं कि तानसेन इसी इमली के पत्ते खाकर अपनी आवाज को सुरीला करते थे.

ग्वालियर के हजीरा इलाके में स्थित तानसेन की समाधि स्थल के नजदीक इमली के पेड़ को चमत्कारी बताया जाता है. क्योंकि इसकी पत्तियां खाने से ना केवल गूंगे बोलने लगते हैं, बल्कि उनकी आवाज भी सुरीली हो जाती है. इस पेड़ की खासियत का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि तानसेन के बाद यहां कई गायक आए और इसी इमली के पेड़ का पत्ता खा कर संगीत की दुनिया में नाम कमाया.

पेड़ सूखा तो संगीत प्रेमियों में हुई निराशा

जानकार बताते हैं कि केएल सहगल, पंकज उदास सहित कई गायकों ने तानसेन मकबरे पर लगे इमली के पत्ते खाए हैं. पहले यहां एक बड़ा पेड़ होता था, उसकी पत्तियों के साथ-साथ छाल और जड़ों को भी लोग अपने साथ ले गए. सालों पुराना पेड़ जब सूख गया तो संगीत प्रेमियों को निराशा होने लगी. फिर यहां पर इमली के पेड़ को जिंदा किया गया.

इमली के पत्तों को प्रसाद मानते हैं संगीत प्रेमी

इस इमली के पेड़ की खासियत का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि ग्वालियर में आने वाले देशी और विदेशी संगीतकार यहां आते हैं. जानकार कहते हैं कि इस जगह पर तानसेन की रूह बसती है, जिसकी वजह से दूर-दूर से संगीत प्रेमी यहां आते है और इमली के पत्तों को तानसेन का प्रसाद मानकर साथ ले जाते हैं.

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बताया जाता है कि इस पेड़ को सन 1400 के आसपास लगाया गया था. पेड़ की सुरक्षा के लिए 10 फीट लंबी लोहे की दीवार है, इसकी वजह से पेड़ को कोई नुकसान नहीं पहुंचता है.

-भारत एक्सप्रेस

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