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घोसी की हार ओम प्रकाश राजभर को ज्यादा क्यों चुभेगी?

Ghosi Bypolls: मुद्दा चाहें ‘स्थानीय बनाम बाहरी’ का हो, 16 महीनों में पाला बदलने का या फिर कुछ और… ओपी राजभर के दावे के विपरीत घोसी में आए नतीजों से बीजेपी पर दबाव कम जरूर होगा.

OP rajbhar

ओपी राजभर, दारा सिंह चौहान

Ghosi Bypolls Results: घोसी उपचुनाव में भाजपा की करारी हार हुई है जिसके बाद पूर्वांचल में सुभासपा प्रमुख ओम प्रकाश राजभर और दारा सिंह चौहान के सियासी कद पर सवाल उठने लगे हैं. समाजवादी खेमे से अलग होने के बाद जिस तरह से ओपी राजभर अखिलेश यादव और सपा के खिलाफ बयानबाजी कर रहे थे और उपचुनाव में जीत के दावे कर रहे थे, ये हार उनकी राजनीतिक आकांक्षाओं को चोट पहुंचाने वाली साबित हो सकती है. दरअसल, इस हार से लोकसभा चुनाव 2024 के मद्देनजर सुभासपा की ‘मोल-भाव’ की कोशिशों को भी झटका लग सकता है.

सपा ने घोसी में शानदार जीत हासिल की और सुधाकर सिंह ने भाजपा के दिग्गज ओबीसी नेता दारा सिंह चौहान को 42,759 वोटों से हराया. घोसी उपचुनाव में दारा सिंह चौहान के 37.5 प्रतिशत वोटों के मुकाबले सुधाकर सिंह ने 57.2 प्रतिशत वोट हासिल किए. सीएम योगी आदित्यनाथ समेत बीजेपी का पूरा अमला घोसी उपचुनाव में उतरा था, जबकि ओपी राजभर ने भी इस उपचुनाव को अपनी ‘नाक’ का सवाल बना लिया था. लेकिन सुधाकर सिंह की जीत से राजभर और बीजेपी दोनों को मायूसी हाथ लगी है.

सपा के खेमे में वोट शिफ्ट होने से नहीं रोक पाना भी चिंता का सबब

घोसी में BJP की हार ने पूर्वी यूपी के उसके मंत्रियों की लोकप्रियता पर भी सवाल खड़े कर दिए हैं, जिन्हें मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के मंत्रिमंडल में उनके समुदायों के प्रमुख चेहरे के तौर पर शामिल किया गया था, लेकिन वे ऊंची जातियों, दलितों, ओबीसी और मुस्लिमों के वोटों को सपा के खेमे में जाने से रोकने में नाकाम साबित हुए.

घोसी में ओबीसी वोटर्स में करीब 54,000 चौहान और 50,000 राजभर मतदाता हैं. 1996 के बाद से इस सीट पर एक विधानसभा चुनाव को छोड़कर सभी में चौहान उम्मीदवार ने जीत हासिल की है. दारा सिंह चौहान और जहूराबाद विधायक ओम प्रकाश राजभर दोनों घोसी उपचुनाव में भाजपा की जीत की स्थिति में योगी सरकार में कैबिनेट में जगह पाने को लेकर आशान्वित थे. हालांकि राजभर का अभी कहना है कि वे हर हाल में मंत्री बनेंगे.

2022 की जीत को नहीं दोहरा सके दारा सिंह चौहान

2022 के विधानसभा चुनाव में दारा सिंह चौहान ने घोसी सीट पर सपा उम्मीदवार के रूप में 1.1 लाख वोट (42.2 प्रतिशत) के साथ जीत हासिल की थी. दिलचस्प बात ये है कि उस समय राजभर भी सपा के साथ थे. लेकिन 16 महीनों बाद ही दारा सिंह चौहान उसी सीट पर बीजेपी उम्मीदवार के तौर पर चुनाव हार गए और इस वक्त भी राजभर उनके साथ थे.

दारा सिंह चौहान इसी साल जुलाई में बीजेपी में शामिल हुए थे और सुभासपा ने भी सपा का साथ छोड़कर NDA के साथ जाने का फैसला कर लिया था. तब राजनीतिक हलकों में माना जा रहा था कि पूर्वांचल की राजनीति में इस बदलाव का असर होगा. खुद बीजेपी ने भी एक सर्वे के बाद ओपी राजभर की पार्टी के साथ गठबंधन करने का फैसला किया था, जिसमें दावा किया गया था कि SBSP घोसी समेत पूर्वी यूपी की 12 लोकसभा सीटों पर जीत हासिल करने में बड़ी भूमिका निभा सकती है.

घोसी लोकसभा सीट से दावेदारी पर संकट

द इंडियन एक्सप्रेस की एक खबर के मुताबिक, राजभर ने 2024 के लोकसभा चुनावों के लिए घोसी से लोकसभा टिकट की मांग की है. 2019 के लोकसभा चुनावों में SBSP ने घोसी में 40,000 से अधिक वोट हासिल किए थे और तीसरे स्थान पर रही थी. वहीं दारा सिंह चौहान 2009 में बसपा के टिकट पर घोसी लोकसभा सीट से चुनाव जीत चुके हैं. घोसी उपचुनाव में बीजेपी की जीत ओपी राजभर के लिए ज्यादा जरूरी थी और इसके लिए वे खुद 18 दिनों तक अरविंद राजभर और अरुण राजभर के साथ कैंपेन करते रहे. सुभासपा प्रमुख इस दौरान खासतौर पर राजभर बहुल इलाकों में जन चौपाल के जरिए वोटरों को अपने पाले में लाने की कोशिश करते रहे. ऐसे में ये हार लोकसभा चुनावों के दौरान घोसी का टिकट पाने की उनकी कोशिशों पर पानी भी फेर सकती है.

मुद्दा चाहें ‘स्थानीय बनाम बाहरी’ का हो, 16 महीनों में पाला बदलने का या फिर कुछ और… ओपी राजभर के दावे के विपरीत घोसी में आए नतीजों से बीजेपी पर दबाव कम जरूर होगा. एक बीजेपी नेता ने कहा, “इस नतीजे के बाद बीजेपी को निश्चित रूप से लोकसभा चुनाव में सीट बंटवारे में सहयोगियों का दबाव कम महसूस होगा. इस हार के बाद सुभासपा की बार्गेनिंग पावर कमजोर हुई है.” वहीं इस हार के बावजूद अरुण राजभर ने संकेत दिए हैं कि बीजेपी-सुभासपा का गठबंधन कायम रहेगा और घोसी उपचुनाव की हार का इस पर कोई असर नहीं पड़ेगा.

-भारत एक्सप्रेस

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